8 महीने, 6 स्क्रीनिंग्स और 7 सुनवाई के बाद सोनी राजदान स्टारर फिल्म को मिला UA सर्टिफिकेट
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लगभग एक महीने पहले, निर्देशक अश्विन कुमार को अपनी फिल्म 'No Fathers in Kashmir' को सर्टिफिकेट देने की प्रक्रिया में सही न्याय पाने के लिए भारत में फिल्मों के प्रमाणन के मामलों में आखिरी फैसला करने वाली संस्था, एफसीएटी के सामने दूसरी बार अपनी फिल्म का प्रदर्शन करना पड़ा था। एक सेंसर सर्टिफिकेट पाने के लिए जुलाई 2018 में फाइल करने की जो सामान्य प्रक्रिया शुरू हुई थी, उसे पूरा करने और अपनी फिल्म को इंसाफ दिलाने के लिए फिल्म के निर्माताओं और कलाकारों को 8 महीने, 6 स्क्रीनिंग्स और 7 सुनवाईयों तक इंतजार करना पड़ा है।
इस फिल्म के साथ कुछ ऐसा हुआ है जो शायद ही कभी होता है, जिसमें प्रमाणन के लिए देरी पर देरी होती रही और आखिरकार इस फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया गया। अपनी फिल्म के विषय के आधार पर सीबीएफसी के द्वारा फिल्म को 'ए' सर्टिफिकेट देने का फैसला फिल्म के निर्माताओं को गलत लगा और उस फैसले को चुनौती देने के बाद, उन्होंने पहले नवंबर में एफसीएटी में अर्जी दी जिसपर दिसंबर में और बाद में जनवरी में सुनवाई हुई थी।
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अब एफसीएटी ने दूसरी बार फिल्म को देखने के एक महीने के बाद इस फिल्म पर अपना आखिरी फैसला दे दिया है जिसमें फिल्म में कुछ कांट-छांट करने और अस्वीकरण में कुछ बदलाव करने के लिए कहा गया है। हालांकि सबसे अहम बात यह है कि एफसीएटी ने इस फिल्म को यू/ए सर्टिफिकेट देकर फिल्म के निर्माताओं द्वारा इस फिल्म को यू/ए कहे जाने के समर्थन की पुष्टि की है।
हालांकि यह फैसला अभी निर्माताओं के द्वारा अंतिम सर्टिफिकेट पाने के लिए सीबीएफसी को प्रस्तुत करने पर टिका है, जिसका उन्हें पूरा भरोसा है कि बोर्ड खुशी से इस फिल्म को पास कर देगी। पेश आनेवाली इस दिक्कत की असली वजह थी फिल्म के लिए की गई देरी थी जो सीबीएफसी के नियमों के खिलाफ थी।
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जिसने फिल्म को देखने से इंकार कर दिया था और फिल्म को देखने के बाद अपने फैसले को रोके रखा और अक्टूबर में उसे 'ए' सर्टिफिकेट दिया गया जबकि यह फिल्म अंग प्रदर्शन, घृणा, हिंसा, खून-खराबे या इन जैसी ए स्तर की किसी भी बात को बढ़ावा नहीं दे रही थी।
इस फिल्म में सोनी राजदान, अंशुमान झा और कुलभूषण खरबंदा हैं और 16 साल के दो किरदारों की प्रेम कहानी के बारे में है जो घाटी में लापता हो गए अपने-अपने पिता की तलाश करते हैं।
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